सिर्फ एक बार आओ,
दिल की आहट सुनने ...
फिर लौटने का इरादा
हम तुम पर छोड़ देंगे ...
क्या मिला तुम्हे सदियों कि मोहब्बत से..
एक शायरी का हुनर और दुसरा जागने कि सज़ा..
महोब्बत ना सही मुकदमा ही करदे मुझ पर कमसेकम तारीख दर तारीख मुलाकात तो होगी
कुछ अलग करना है तो भीड़ से थोड़ा हटकर चलो भीड़ साहस तो देती हैं पर पहेचान छिन लेती हैं
चाह कर भी नही पूछ सकते हाल उनका,
कहीं वो ये ना कहदे, की ये हक़ तुम्हे किसने दिया!!!
सोचते हैं सिख ले हम भी बेरुखी करना प्यार निभाते निभाते लगता है हम ने अपनी ही कदर खो दि
तोहमतें तो लगती रहीं रोज़ नई नई मुझपर।
पर जो सबसे हसीन इलज़ाम था वो तेरा नाम था।
No comments:
Post a Comment