कुछ शायरियॉ
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अब नींद से कहो हम से सुलह कर ले ग़ालिब;
वो दौर चला गया जिसके लिए हम जागा करते थे!
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एक वक्त था की इजहार ए मोहब्बत के मुझे शब्द नही मिलते थे .....
मेहरबानी तेरी बेवफ़ाई की मुझको शायर बना दिया...!!!!!!
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उलझनों और कश्मकश में,
उम्मीद की ढाल लिए बैठा हूँ।
ए जिंदगी! तेरी हर चाल के लिए,
मैं दो चाल लिए बैठा हूँ |
लुत्फ़ उठा रहा हूँ मैं भी आँख - मिचोली का।
मिलेगी कामयाबी, हौसला कमाल का लिए बैठा हूँ l
चल मान लिया, दो-चार दिन नहीं मेरे मुताबिक़।
गिरेबान में अपने, ये सुनहरा साल लिए बैठा हूँ l
ये गहराइयां, ये लहरें, ये तूफां, तुम्हे मुबारक।
मुझे क्या फ़िक्र, मैं कश्तीया और दोस्त बेमिसाल लिए बैठा हूँ।.....
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मुझें छोड़कर वो खुश हैं ...तो शिकायत कैसी,
अब मैं उन्हें खुश भी न देखूं तो मोहब्बत कैसी ?
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कितनी अजीब है मेरे अन्दर की तन्हाई भी हजारो अपने है मगर याद सिर्फ तुम ही आते हो
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मुझे मालूम था कि ,
वो रास्ते कभी
मेरी मंजिल तक नहीं जाते थे ..
फिर भी
मैं चलता रहा क्यूँ कि ,
उस राह में कुछ अपनों के
घर भी आते थे…..!!
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